ग्राम प्रधान, सचिव और चार सदस्य मिलकर लूट रहे पंचायत का सरकारी धन?

भ्रष्टाचार के खिलाफ प्रधान और सचिव के विरुद्ध कार्यवाही के लिए सदस्यों को हाई कोर्ट और लोकायुक्त की शरण में जाना पड़ा!

लेखराम मौर्य
लखनऊ । राजधानी लखनऊ के विकास खंडों की ग्राम पंचायतों में इस कदर प्रधान और सचिव ने लूट मचा रखी है कि सचिव सूचना के अधिकार के अंतर्गत पंचायत द्वारा कराए गए कार्यों की जानकारी देने से इंकार  करते हैं और यदि किसी कारण बस जानकारी देनी पड़ जाए तो आधी अधूरी गोलमाल करके जानकारी दी जाती है जिससे उनके भ्रष्टाचार की पोल न खुलने पाए तथा आम जनता के अलावा ग्राम पंचायत सदस्यों को भी पंचायत में कराए जा रहे विकास कार्यों की कोई भी जानकारी नहीं दी जाती है ऐसे सैकड़ों मामले विकासखंड से लेकर सूचना आयुक्त तक पेंडिंग पड़े हैं। इसके अलावा जिले स्तर के अधिकारी भी जांच के नाम पर सिर्फ टालमटोल करने और लीपा पोती करने के अलावा कोई सही जांच और कार्रवाई नहीं करते हैं।
ऐसा ही एक मामला राजधानी के विकासखंड मलिहाबाद की ग्राम पंचायत जिन्दौर का सामने आया है यहां के निवासी राजेश कुमार ने पहले 1 अप्रैल 2021 से कराए गए कार्यों की विस्तृत जानकारी मांगी परंतु सचिव ने किसी प्रकार की जानकारी देने से इनकार कर दिया परंतु ग्राम पंचायत सदस्य होने के नाते राजेश कुमार ने सूचना आयुक्त कार्यालय में अपील की जहां से उन्हें आधी अधूरी जानकारी उपलब्ध कराई गई लेकिन जो जानकारी दी गई गांव के अन्य 10 सदस्यों ने मिलकर उन कार्यों का सत्यापन किया तो पता चला कि बहुत से कार्य अधूरे पड़े हैं और उनमें भी घटिया सामग्री का प्रयोग किया गया है। गांव के अन्य ग्राम पंचायत सदस्यों ने भ्रष्टाचार पर रोक लगाने के लिए राजेश कुमार के साथ खड़े हो गए जिनमे राम लखन, राजेंद्र कुमार, हरिप्रसाद, कमलेश गुप्ता, रामनरेश, संजय कुमार सविता, नगमा, शिल्पा, प्यारेलाल आदि ने जांच करने की मांग की। परंतु अधिकारियों द्वारा सही जांच न करने और भ्रष्टाचार में लिप्त ग्राम प्रधान सतीश कुमार और सचिव ब्रजेश कुमार वर्मा को बचाने के लिए हर संभव प्रयास करने लगे। 
राजेश कुमार सहित अन्य 10 सदस्यों ने बताया कि ग्राम पंचायत में पुरानी स्ट्रीट लाइटों की मरम्मत कराकर नई लाइटों का पैसा निकाल लिया गया और मरम्मत के नाम पर भी काफी लूट मचाई गई है यही नहीं हैंड पाइप मरम्मत और रिपोर्ट के नाम पर भी लाखों रुपए का गोलमाल किया गया है मनरेगा योजना में भी फर्जी मजदूर लगाकर उनके नाम पर भी लाखों रुपए निकल लिए गए हैं। इसी प्रकार चकमार्गों और अन्य पक्के कार्यों में भी घटिया सामग्री का प्रयोग किया गया है जो अभी से टूटने लगे हैं। 
ग्राम पंचायत सदस्यों ने बताया कि जब अधिकारियों ने जांच के नाम पर सिर्फ खानापूर्ति की जाने लगी तो मजबूर होकर हमें उच्च न्यायालय लखनऊ और लोकायुक्त कार्यालय में शिकायत करनी पड़ी जिस पर उच्च न्यायालय ने प्रधान के अधिकारों पर रोक लगाते हुए चार माह में जांच पूरी करने का आदेश जिला अधिकारी को दिया है। 
अब देखना है कि लोकायुक्त और उच्च न्यायालय का आदेश भ्रष्टाचार में आकर दुबे अधिकारियों पर कितना असर होता है और निष्पक्ष जांच होती है या फिर लीपा पोती कर भ्रष्टाचारियों को बचाने का प्रयास किया जाएगा

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