मोदी की भाजपा में टूटने लगा अनुशासन
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी व केंद्रीय गृहमंत्री अमित शाह के भारतीय जनता पार्टी में अनुशासन की डोर कमजोर पड़ने लगी। एक, दो नहीं कई भाजपा शासित राज्य इसके उदाहरण है।
यह अलग है कि मीडिया उनको सुर्खियां बनने से बचता है। वजह समझाना भी मुश्किल नहीं। अटल, आडवाणी वाली भाजपा में पार्टी नेताओं को को बोलने की स्वतंत्रता रही। वैसा मोदी व शाह की भाजपा में नहीं है। उत्तर प्रदेश की सबसे पहले बात करें तो मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ से उपमुख्यमंत्री केशव प्रसाद मौर्य व दूसरे मुख्यमंत्री बृजेश पाठक के रिश्ते छिपे नहीं है।
लंबे समय से इनकी आपस में खींचतान जारी है। दोनों उपमुख्यमंत्रियों को अगर दिल्ली का उनके सिर पर हाथ है तो मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ स्वयं इनको वह वा मात के खेल में मात देते दिखेंगे। बात हिमाचल की करते हैं। हिमाचल विधानसभा के चुनाव के समय ही पार्टी नेतृत्व को चुनौती मिलने लगी थी। पार्टी ने जिस विधायक का टिकट काटा था, उसने बगावत कर चुनाव लड़ा । प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के टेलीफोन करके मनाने पर भी नहीं माना। पहले ऐसा मोदी की भाजपा में संभव नहीं था। प्रधानमंत्री का आदेश ही अंतिम होता था। हिमाचल की यह बीमारी कई भाजपा शासित राज्यों में धीरे-धीरे फैल गई।
हरियाणा के मुख्यमंत्री नायब सिंह सैनी व मंत्री अनिल विज के बीच 36 का रिश्ता किसी से छुपा नहीं। सैनी के मुख्यमंत्री पद पर दूसरी बार ताजपोशी के साथ ही दोनों के रिश्ते सार्वजनिक हो चुके हैं। विज ने सैनी के खिलाफ मोर्चा खोल रखा है। पार्टी को अनिल विज को नोटिस जारी करने की राह पर आगे बढ़ाना पड़ा।
राजस्थान प्रदेश को ही लें। पार्टी के वरिष्ठ नेता किरोड़ी लाल मीणा ने अपने ही सरकार के खिलाफ मोर्चा खोल रखा है। पार्टी की ओर से उनको भी नोटिस जारी हो चुकी है। कर्नाटक में तो पार्टी के अंदर घमासान मचा हुआ है। उसमें पार्टी के ही एक सांगठनिक मंत्री की भूमिका ही संदेह के घेरे में है। प्रदेश अध्यक्ष बीवाई विजेंद्र के विरोध में पार्टी के कई नेताओं की बयानबाजी जारी है।वह प्रदेश अध्यक्ष को हटाने की मांग कर रहे हैं।
पार्टी के नेता बासनगौड़ा पाटिल यतनलाल इनके अगुवा बताए जाते हैं। रमेश जरकिहोली का नाम भी विरोध करने वालों में है। यह सभी पूर्व मुख्यमंत्री बसवराज बोम्मई को अपना नेता मानते हैं। यह है अनुशासन तार, तार होने की वह तस्वीर, जो गैर भाजपा दलों में पहले देखने को मिलती थी खास कर कांग्रेस में। धीरे-धीरे वही बीमारी भारतीय जनता पार्टी में भी घर कर गई है चाह कर भी पार्टी समय से पहले इसका इलाज करने में असहाय दिखती है।
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