यह घड़ी तो ध्यान प्रार्थना की थी!

..एक लकड़ी चिता में फेंक दी और चल दिए...

श्मशान  में जाकर हैरानी की बातें मुझे हमेशा दिखायी पड़ती। उधर आदमी जल रहा है और लोग बैठे राजनीति,व्यापार की गपशप और हंसी तितोले कर रहे हैं। बीच-बीच में यह भी सुनाई देता है अब क्या देर हैं इससे मैं हमेशा चमत्कृत होता हूं। 

आदमी जल' रहा है, कल तक इससे बातें करते थे, यह इनका दोस्त था, मित्र था, प्रियजन था, आज वह जल रहा है, उसकी शव में आग लगा दी गई है, अब बैठ कर वहीं आसपास गपशप हो रही है।  याद भी नहीं आ रही कि यह मौत तुम्हारी भी मौत है। यह घड़ी तो ध्यान प्रार्थना की थी। यह तो बैठ कर सोचने का चिंतन करने का समय था।

आदमी मर गया, यह भी इन्हीं बातों को करते मर गया कि कौन सी  फिल्म कहाँ लगी है, राजनीति में क्या हो रहा है? और हम भी इन्हीं बातों को करते मर जाएँगे। मृतक के लिए शमशान घाट में कोई सामूहिकश्रद्धांजलि नहीं कोई प्रार्थना नहीं केवल एक औपचारिकता। 

एक लकड़ी चिता में फेंक दी और चल दिए। कमोवेश यही तुम्हारे साथ भी होगा, बस केवल परिदृश्य का अंतर होगा, तुम उधर हो गए लोग इधर होंगे। 

मुझे अब धीरे धीरे समझ में आना शुरू हुआ,लोग अपने को बचाने के लिए बातों में उलझाए हुए हैं। 

यह आदमी मर गया, यह बात दिखायी नहीं पड़नी चाहिए। क्योंकि यह अस्त व्यस्त कर देगी। यह उनकी जिंदगी के ढाँचे को तोड़ मरोड़ देगी। उनको फिर ईश्वर परमात्मा प्रकृति को याद करने को मजबूर होना पड़ेगा। फिर संसार का स्मरण करने से काम न चलेगा। क्योंकि संसार का स्मरण दुनियादारी करते करते रोज लोग मर रहे हैं।

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