अनंत अम्बानी की मानवीय संवेदना आरएसएस के लिए घातक?

मनोज मानव

आरएसएस ने धर्म को बचाने के लिए लगता है कि सारी जिम्मेदारी युवाओं के कंधे पर डाल दिया है!

यदि रास्ते में किसी दूसरे धर्म का कोई स्थान है, तो उसके ऊपर चढ़कर प्रदर्शन करना, रास्ते में किसी दूसरे धर्म की बस्ती हो तो घुसकर नारे-बाजी करना, मानवीय संवेदना का चीर हरण करके उन्हें उकसाना और सांप्रदायिक तनाव पैदा करना एक फैशन बन गया है लेकिन यहाँ तो बिल्कुल उलट हो गया

अनंत अम्बानी घर से निकले और मुर्गीयो की जान बचाने लगे। उक्त घटना ने अनंत अम्बानी का बौद्धिक स्तर व संवेदना दोनों को देश ने महसूस किया है, जिस प्रकार से अनंत हनुमान चालीसा का पाठ पढ़ रहे हैं, धर्म के आचरण में आगे बढ़ रहे हैं

इसी मानवीय संवेदना से युक्त आचरण की उम्मीद असल में देश के लोग भी कर रहे हैं, लेकिन इसके उलट कार्य करने वाली आरएसएस के मिशन का क्या होगा यदि कट्टर योद्धा बनने वाले युवा, अनंत का आचरण करने लगे तो? आरएसएस को चाहिए कि अनंत के व्यवहार के जैसे प्रशिक्षण अन्य युवाओं को भी दें और देश में कट्टरता की पाठ पढ़ाना बंद करें।

प्रश्न यह है कि क्या यह आरएसएस की एक बड़ी चूक नहीं है?, या मित्र की विफलता है? एक मित्र को अपने दोस्त के बेटे को भी कुछ गहरा ज्ञान नहीं देना चाहिए? कुछ कट्टरता के प्रति समझ विकसित होना आवश्यक है?, क्या यह आरएसएस की एक बड़ी विफलता नहीं है? आदि-आदि।

अनंत अम्बानी की शायद यह पहली धर्म यात्रा भी है, रास्ते में उनकी मानवीय संवेदना जाग्रत हो जाती है, फिर वें मुर्गा-मुर्गी की जान बचाने लगते है, उनकी यह सोंच बता रही है कि वें हकीकत से वे कितने अनजान हैं। उन्हें इस नजरिये को और बड़ा करना चाहिए और देखना चाहिए कि इस देश में करोड़ों-करोड़ों लोग जब डर और भय में हनुमान चालीसा का पाठ पढ़कर जिंदा रहने के लिए विवश हैं, रात्रि के अँधेरे में अत्यंत दयनीय जीवन जीने वाले लोग हनुमान चालीसा पढ़कर जीने के लिए विवश हैं

इसी देश में जब रात्रि में बहन बेटियां बाहर निकलती है तो इंसानी भेड़ियों से बचने के लिए, सूखा चावल खाने वाले उन करोड़ों हिंदू बच्चों के लिए हनुमान चालीसा ही एक मात्र सहारा है, ऐसे में सरकार जब खुद सत्य चरित्र निभाने में विफल हो रही हो तो इनका सहारा कौन बनेगा? इसलिए मानवीय संवेदना से युक्त और हनुमान भक्त अनंत अम्बानी को अपना दायरा और बड़ा करके मुर्गे-मुर्गी और अन्य जानवरों के बजाय, इंसानों के तरफ भी सोचना चाहिए तभी सही मायने में उनकी मानवीय संवेदना को देश के लोग सराहेंगे।

उक्त घटना अनंत अंबानी की मानवीय संवेदना और आरएसएस की कट्टरता के सामने एक वैचारिक चुनौती के रूप में उभरती दिख रही है। 

यह न केवल आरएसएस के मिशन के लिए प्रतिकूल है बल्कि उसके मिशन को कमजोर करने की क्षमता भी रखती है और एक नई दिशा भी युवाओं को प्रदान कर सकती है, बशर्ते इसे सही दिशा में आगे बढ़ाया जाए। 

आरएसएस के लिए यह खतरा इसलिए भी बड़ा है, क्योंकि कट्टरता और संवेदनहीनता को सीधे चुनौती देता है। 

इस विरोधाभास में एक संभावना छिपी है कि यदि संवेदनशीलता को प्राथमिकता दी जाए, तो समाज में सकारात्मक बदलाव की शुरुआत हो सकती है।

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