इच्छा, सक्रियता और कल्पना..!

बाज लगभग 70 वर्ष जीता है लेकिन अपने जीवन के अन्तिम पड़ाव में आते आते उसे एक महत्त्वपूर्ण निर्णय लेना पढ़ता है..

इस अवस्था में उसके शरीर के तीन महत्त्वपूर्ण अंग निष्प्रभावी होने लगते है..

पंजे लचीले व् लंबे हो जाते है जो शिकार पकड़ने में अक्षम हो जाते है..

चोंच आगे की और मुड जाने से भोजन निकालने में परेशानी करती है..

पंख भारी हो जाते है और सीने से चिपक जाते है जिस कारण उडान सीमित कर देते है..

भोजन ढूंढना,पकड़ना और खाना तीनो प्रक्रियाएँ अपनी धार खोने लगती है..

उसके पास 3 ही विकल्प बचते है अपनी प्रवृति छोड़ दे..

और गिद्ध की तरह बचे हुए भोजन पर निर्वाह करे।

या फिर अपने को फिर स्थापित करे आकाश के निर्द्वंद एकाधिपति के रूप में।

जहाँ पहले 2 विकल्प अत्यंत सरल है वही तीसरा अत्यंत पीड़ादाई  कठिन व् लंबा।

बाज पीड़ा चुनता है और खुद को पुनर्स्थापित करता है।

वह किसी एकांत स्थान पर जाता है एक घोंसला बनाता है और तब प्रारम्भ करता है पूरी प्रक्रिया।

सबसे पहले वह अपनी चोंच और पंजे चट्टान पर मार मार कर तोड़ देता है।

अपनी चोंच तोडने से अधिक पीड़ा दाई कुछ नहीं पक्षी राज के लिए।

तब वह प्रतीक्षा करता है अपनी चोंच और पंजे पुनः उग आने के लिए।

नई चोंच और पंजे निकल आने पर वह अपने पंख एक एक कर के नोच देता है

और पंखो के पुनः निकलने की प्रतीक्षा करता है।

150 दिन की पीड़ादायी प्रतीक्षा

और तब मिलती है उसे वही भव्य और ऊँची उड़ान पहले जैसी नई।

इस पुनर्स्थापना के बाद वह 30 साल और जीता है 

ऊर्जा सम्मान और गरिमा के साथ।

इच्छा, सक्रियता और कल्पना...

तीनो के तीनो निर्बल पडने लगते है हम में भी

हमे भी भूत काल में जकड़े अस्तित्व के भारीपन को त्याग कर कल्पना की उन्मुक्त उड़ाने भरी होंगी 

150 दिन ना सही 1 महीना हि बिताया जाए स्वयं को पुनरस्थापति करने के लिए जो शरीर और मन से चिपका हुआ है

इसे तोड़ने और नोचने में पीड़ा तो होगी ही पर बाज तब उड़ाने भरने की तैयार होंगे पर इस बार उड़ाने और ऊँची,अनन्त और अनुभवी होंगी।

हर दिन कुछ चिंतन किया जाए क्योंकि हम ही वो व्यक्ति है जो खुद को औरो से बेहतर जानते है।

सिर्फ इतना की निष्पक्षता के साथ छोटी छोटी शुरआत करे परिवर्तन करने की ।

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