..आखिर क्यों UPPCL के वितरण निगम घाटे में गए?
अनुभवहीन महाज्ञानी भारतीय प्रशासनिक सेवा के अधिकारियों ने छीने कर्मियों के लोकतांत्रिक अधिकार
लखनऊ। उत्तर प्रदेश पावर कॉरपोरेशन लिमिटेड और विद्युत वितरण निगमो में सर्वोच्च प्रबंधन में नियम विरुद्ध बैठे भारतीय प्रशासनिक सेवा के अधिकारियों द्वारा संचालित वितरण निगम व पावर कॉरपोरेशन जिसको निजी हाथों में सौंपने के लिए गए एकतरफा फैसले के विरुद्ध वितरण निगम में कार्यरत समस्त कर्मचारी धीरे धीरे विरोध में उतर आए हैं।
विगत 2017 से यानि कि जब से भारतीय जनता पार्टी की सरकार सत्ता में आई तब से यह दूसरी बार है कि विद्युत विभाग को निजी हाथों में सौंपने की कोशिश इन भारतीय प्रशासनिक सेवा के अधिकारियों द्वारा की जा रही है ।
इससे पूर्व जब कुछ शहरों के ही निजीकरण की बात इन बड़का बाबूओ द्वारा की जा रही थी तब भी विरोध हुआ था फिर समझौता हुआ माननीय उच्च न्यायालय में लिख कर दिया गया कि निजीकरण की कोई नीति नहीं है व केन्द्रीय एजेंसियों के माध्यम से हिसाब किताब की जांच कराई जाएगी यानि आडिट।
- परन्तु आज तक ना समन्वय समिति की कोई मीटिंग हुई ना हिसाब किताब की जांच.
- परन्तु इस बार दो दो वितरण निगमो के निजीकरण की बात हो रही है.
- आखिर क्यों वितरण निगम घाटे में गए.?
जब कि राज्य विद्युत परिषद के विघटन होने के पश्चात से ही भारतीय प्रशासनिक सेवा के अधिकारियों ने उत्तर प्रदेश पावर कॉरपोरेशन की कमान हमेशा अपने हाथों में ले रखी है इन्हीं के दिशा-निर्देश का पालन अभियंता वर्ग हो या लिपिक वर्ग चाहे संविदा कर्मियों का वर्ग हो सबने आंख बन्द कर के किया, फिर घाटे का जिम्मेदार यह वर्ग कैसे हो सकता है?
जब कमान आपके हाथ में रही, दिशा निर्देश आपके रहे तो गलती भी आप ही की होगी, घाटे की जिम्मेदारी भी आप की होगी तो आपकी गलती की सजा कर्मचारी व प्रदेश की जनता क्यों भुगते ?
क्यों ना आप ही को हटा कर नियमित टेक्नोक्रेट वर्ग के हाथों में यह कमान सौंप दी जाए! जैसा कि मेमोरेंडम आफ आर्टिकल में लिखा है क्योंकि टेक्नोक्रेट वर्ग अपनी नौकरी के पहले दिन से जब तक वो सेवानिवृत्त नहीं हो जाता इन्ही वितरण निगमो में अपना पूरा जीवन काल लगा देता है, यह भी उसका परिवार है इन विभागीय अधिकारियों के पास सिद्ध कौशल, विभागीय यांत्रिक अनुभव व कार्य को करने विभाग को चलाने आदि का एक लम्बा अनुभव होता है क्योंकि यह इन अभियंताओ व कर्मचारीयों का मूल विभाग है, जिससे इन अधिकारियों से लेकर संविदा कर्मियों को लगाव होता है क्योंकि इससे ही इनका परिवार का भारण पोषण होता है इनके बच्चे इसी विभाग से मिले हुए वेतन की वजह से अच्छी तरह से होता हैं जबकि भारतीय प्रशासनिक सेवा के अधिकारी आज इस विभाग में कल उस विभाग में परसों किसी और विभाग में यानि कि खानाबदोशो की तरह अपना जीवन काल यानि कि नौकरी का समय काटते हैं, इनके पास ज्ञान की कोई कमी नहीं होती परन्तु यह किसी एक विभाग में लम्बे समय तक अपनी सेवाएं नहीं दे पाते इनको खानाबदोश या बंजारा भी कह सकते हैं क्योंकि इनका कोई मूल विभाग तो होता नहीं (कहीं की ईंट कहीं का रोड़ा भानुमती ने कुनबा जोड़ा) अब जब यह भारतीय प्रशासनिक सेवा के अधिकारी जब ऊर्जा विभाग में आ जाते हैं तो बिना अनुभव के विभाग को चलाने लगते हैं।
कौन रोकता है आपको ऊर्जा विभाग चलाने से जाओ अपर मुख्य सचिव बनकर राज करो यहां नियम विरुद्ध प्रबंधन में आ कर क्यों हस्तक्षेप करते हैं?
जबकि ऊर्जा एक जटिल यांत्रिकी विभाग है जिसमें पूर्ण अनुभव वा सिद्ध कौशल चाहिए जिसके ना होने पर या थोड़ी सी चूक होने पर एक जान चली जाती हैं एक परिवार बिखर जाता है।
आपका क्या जाता है क्योंकि आप तो ऊर्जा के परिवार से हो नहीं कि उस कर्मचारी को जानते हो।
जब कि बहुत से ऐसे अधिकारी हैं जो अपने सभी संविदाकर्मियों तक को जानते हैं और उनके दुःख सुख में खड़े रहते हैं। आपसे तो कोई भी अधिकारी सीधे बात नहीं कर सकता जब कि उन अधिकारियों से वो अपने मन की बात सीधे कह सकते हैं।
आप इस विभाग में एक बाहरी व्यक्ति हो जो कि जबर्दस्ती आ कर इस विभाग को अपने तौर तरीके से चलाने की कोशिश करते हैं जब तक आप विभाग को और विभाग आपको समझता है तब तक आपकी तैनाती और किसी विभाग में हो जाती है ।
आज तक कभी किसी भारतीय प्रशासनिक सेवा का कोई अधिकारी ऐसा नहीं हुआ कि जिसके जाने के बाद उस अधिकारी को विदाई समारोह किया हो उसे ससम्मान विदा किया गया हो कर्मचारीयों को उसके जाने पर अफसोस हुआ हो?
बल्कि यहां तो भारतीय प्रशासनिक सेवा के अधिकारियों के जाने पर मिठाई बांटी जाती हैं तो आप महाज्ञानी लोग खुद समझ सकते हैं कि आप की इस विभाग में हैसियत क्या है।
जब आप कर्मियों में दूध और शहद की तरह नहीं घुलेंगे तब तक आप विभाग को चला ही नहीं सकते। आप के बीच की एक अधिकारी संविदा कर्मियों को व्यक्तिगत रूप से देख लेने की घमकी देती है एक अधिकारी जो प्रधानमंत्री के क्षेत्र में बैठे हैं उनके आगे मिल कर जब संविदाकर्मी अपनी परेशानी रखना चाहते हैं तो इस भीषण गर्मी में प्रबंध निदेशक कार्यालय का गेट बंद कर दिया जाता है। अपनी समस्याओं को बताने के लिए धराना प्रदर्शन करना पड़ता है।
लोकतंत्रिक अधिकारो का दमन करने के लिए अध्यक्ष पावर कॉरपोरेशन जो कि इस विभाग का पिता स्वरूप होता है वह पुलिस की ताकत का प्रयोग कर कर्मचारीयों का दमन करते हैं।
घाटा आपके यानि कि भारतीय प्रशासनिक सेवा के अधिकारियों यानि कि बड़का बाबुओं की गलत नीतियों की वजह से होता है और उसका ठीकरा कर्मचारीयों और जनता के ऊपर सरकार को गुमराह कर आप फोड़ना चाहते हैं जो कि आपसे ना हो पाएगा।
जैसे आप लोगों ने सरकार को गुमराह कर नियम विरुद्ध प्रबंध के सभी उच्च पदों पर कब्जा कर लिया हैं आपके पास अनुभवी नहीं चाटुकार लोगों की फौज है जो अपना और आपका हित साधने हमेशा से लगे हुए हैं आपकी अज्ञानता के कारण खर्चे बढ़े हुए हैं।
उत्पादन गृह बनाने की जगह बाहरी लोगों को सुख सुविधा प्रदान कर उनसे विद्युत उत्पादन कराना अपने ही पैसे वसूलने के लिए बाहरी एजेंसी लगाना और उनको कमीशन देना अपने ही विभागीय कार्यों को दूसरों से कराना।
अगर छंटनी करनी है तो शक्ति भवन में बैठे मुख्यालय के कर्मचारियों की करो क्यों नहीं आज तक उनको वितरण निगमो में भेजा गया जबकि बिजली खरीद करने के लिए व विभिन्न वितरण निगमो को आपूर्ति के लिए आपने एस एल डी सी (SLDC) स्टेट डिस्पैच सेन्टर बना रखा है। इस तरह के अनेकों खर्च बढ़ा रखें है और ठीकरा संविदा कर्मियों और जनता पर फोड़ रहे है एक सबस्टेशन संचालक का वेतन 12000 तो वही सेवानिवृत्त फौजी का वेतन 30000 जब कि दोनों एक ही कार्य करते हैं यह है आपकी नीतियां??
अगर आप की जगह अध्यक्ष से ले कर निदेशक तक इस विभाग के ही कर्मचारी होते तो यह विभाग निश्चित रूप से एक बार फिर से सोने के पंखों वाली चिड़िया बन जाए। याद है जब एक टेक्नोक्रेट के हाथ में थोड़े समय के लिए कमान आई थी तब ना तो कोई धरना होता था ना प्रदर्शन ना विभाग को बेचने की बात हुई बल्कि एक रिपोर्ट बना दी गयी कि अमुक-अमुक काम करा दिए जाएं तो विभाग आगे तरक्की करेगा। इस रपट पर एक टेक्नोक्रेट व एक ब्यूरोक्रेट दोनों के हस्ताक्षर थे तो अगर वो सही थे तो आप ग़लत और अगर आप सही तो वो ग़लत।
मगर आप तो आप है आप की उपमा सिर्फ आप है (समझने वाले समझ गये) वैसे आप अपने पूंजीपति मित्रों के लिए जो विभाग को बेचने पर आमादा है व आप नहीं कर पाएंगे, क्योंकि आप बेचने पर आमादा है और कर्मचारी अपने विभाग को बचाने में जान देने पर आमादा है। वैसे भी यह भारत है लोकतंत्रक देश यहां तानाशाही किसी की नहीं चल पाएगी।
आपके मित्र प्रेम के चक्कर में कहीं सरकार ही ना पलट जाए क्योंकि आपका यह फैसला प्रदेश को बहुत पीछे ले जाएगा वैसे जीत तो यहां धर्म की ही होती है और धर्म आज विभाग के कर्मचारियों के पक्ष में खड़ा है। -अविजित आनन्द, चन्द्रशेखर सिंह
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