जहां हाथों में हो..!
हेमन्त कुशवाहा
जहाँ हाथों में तलवारें हों
और सांसों में अंगारे हों
जहां मृत्यु का तनिक भय ना हो
और दुश्मन के लिए ललकारें हो
इस जीवन का एक ध्येय यही हो
फिर वहां असंभव कुछ भी नहीं रहता
बल्कि सब मुमकिन हो जाता है
सरीखे' अत्याचारी को पूरी तरह से मिटा देना
उद्दंडता को पूरी तरह से उखाड़ फेंकना
और कट्टरता को पूरी तरह से कुचल देना
चूंकि यही स्वाभिमान का एक खेला है
जिसमें जिंदा लोगों का एक रेला है
और जो सिर्फ पुरुषों का एक मेला है।
ये जीवन एक परिक्षेत्र है
जो वीरों का एक रणक्षेत्र है
जिसमें मातृभूमि का संदेश है
अगर मानव रूप में जन्म लिया
तो फिर अपने जीवन की परवाह ना करो
और अपने स्वाभिमान की खातिर
यहां दुश्मन की हद में घुसकर
उसके रक्त से स्नान करो
चूंकि यह आपकी मातृभूमि है और
यही आपकी कर्म-भूमि भी'
और यही आपकी जन्म भूमि है
जिसकी रक्षा करना आपका दायित्व है।
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