कटहल का सरकारी बंगलों से सीधा रिश्ता

कटहल होगा तो सरकारी बंगला होगा और सरकारी बंगला होगा तो कटहल होगा। जितना बडा सरकारी बंगला होगा उतनी ही अधिक तादाद मे कटहल के पेड़ होंगे। और जितना बडा अफसर होगा उसके बंगले पर लगे कटहल उतने ही अधिक ज़ायक़ेदार होंगे। 

कटहल की उपस्थिति बताती है कि कोई सरकारी आदमी आसपास पाया जाता है। कटहल या तो किसान पैदा करता है या अफसर। कटहल का मालिकाना हक बस इन दोनो के पास।अंतर इतना भर कि कटहल उगाने के लिए किसान पसीना बहाता है फल आने का इंतज़ार करता है और अफसर लगे लगाए कटहल के पेड़ पाता है और जब मन हो कटहल खाता है। 

साहब के भर पेट खाने के बाद बचे सरकारी कटहलों का इस्तेमाल मेलजोल बढ़ाने के लिए होता है।साहब आमतौर पर दोस्तों को ही भेजता है ये। यदा कदा किसी मुँहलगे जूनियर को भी मिल जाते हैं ये और फिर वो अपने साथियों से हफ्तों उनके स्वाद, गुण और दिव्यता की चर्चा करता रहता है।

साहब और कटहल से याद आया। नरसिंहपुर की पोस्टिंग के दौरान मुझे मिले सरकारी बंगले मे एक कटहल का पेड़ मौजूद था। जब तक रहे कटहल खाए गए ,जब ट्रांसफ़र हुआ ,उस वक्त भी वह पेड़ कटहलों से लदा था। दरियादिली के आलम मे ,घर मे काम करने वाले बंदों को कहा गया कि वो आपस मे बाँट लें कटहल। 

बाद मे पता चला ,कटहलों का बँटवारा करते वक्त उन लोगों के बीच भारी तकरार हुई। खून खच्चर हुआ और कुछेक सर भी फूटे। ग्वालियर के सरकारी घर मे भी कटहल का पेड़ मिला। पर पता नही क्यों, शायद किसी कंजूस अफसर के हाथों लगे होने की वजह से वो पेड़ कटहल देने को तैयार था नही, सो हम लोग वहां इसका एक और पौधा रोप आए ताकि आने वाले भविष्य में वहां भी अमन चैन कायम रहे। 

ऐसे शाकाहारी जो अपना दीन ईमान खराब किए बिना मांसाहार का सुख भोगना चाहते हैं उनका मन रखने के लिए होशियार लोग कटहल के कबाब, कोफ्ते, कटहल की बिरयानी और पुलाव जैसी चीजें ईजाद कर चुके। बंगाल और उड़ीसा में जिस तरह मछली को ‘जल तुरई’ कहा जाता है। कुछ उसी अंदाज में कटहल को ‘गाछपाठा’ यानी पेड़ पर पैदा होने वाला बकरी का बच्चा’ कहा जाता है। ऐसे जहीन लोगों को मेरी सलाह यही कि ऐसी बातें करने से बचे। 
आपके ऐसा कहने से, वतन पर जान फ़िदा करने वाले मुर्गों और बकरों का मन खराब होता है,और मछलियाँ डूब कर मर जाना चाहती हैं। बेहतर यह होगा कि वे सुनी सुनाई बातों पर यकीन न करें। केवल शकल पर न जाएं कटहल की सब्जी की। पहले मटन चिकन का भोग लगाएं फिर कटहल के बारे मे राय जाहिर करें। 

कटहल बाहर से अख्खड और रूखा और अंदर से रेशेदार रसिक। इसे हाथ लगाना जरा झंझट भरा काम। इसे काटने पर, जो सफेद चिपचिपा लसदार रस बाहर निकलता है वो फेवीकोल की याद दिलाता है। 

तेल लगाने से ही काम बनते है हमारे यहाँ।कटहल पर भी यही नियम लागू। माहिर लोग हथेली मे तेल लगा कर ही काट पाते है इसे। और जो ऐसा कर पाते है वो कुछ भी कर सकते है। और किसी से कुछ भी करवा सकते हैं।

कटहल कब तोड़ा जाए ,कौन से मिर्च मसाले डाल कर कितनी देर पकाया जाए ये कलाकारी। कटहल बनाना सबके बस की बात नही। ऊंगली चाटने लायक़ कटहल बनाने वाले मुश्किल से मिलेंगे आपको। यदि आपकी बीबी यदि ये कलाकारी कर पाती है क़ायदे से तो आप किस्मत वाले हैं।

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