गौतम बुद्ध के सिद्धांत आज भी प्रासंगिक हैं -तेजपाल मौर्य

  • बुद्ध जयंती पर केवल दीप जलाना पर्याप्त नहीं..
  • बल्कि उनके विचारों की ज्योति को जीवन में उतारना ही सच्ची श्रद्धांजलि होगी..
गौतम बुद्ध, जिन्हें विश्व भर में "बुद्ध" अर्थात् "बोध प्राप्त व्यक्ति" के रूप में जाना जाता है, केवल एक धर्मप्रवर्तक ही नहीं, बल्कि एक युगप्रवर्तक भी थे। उनका जीवन, उनके विचार और उनका दर्शन आज भी लाखों-करोड़ों लोगों के लिए प्रेरणास्रोत है। 
हर वर्ष वैशाख पूर्णिमा को बुद्ध जयंती मनाई जाती है, जो न केवल उनके जन्म दिवस का प्रतीक है, बल्कि इसी दिन उन्हें ज्ञान प्राप्त हुआ और इसी दिन उन्होंने महापरिनिर्वाण को प्राप्त किया था। यह त्रिवेणी संयोग अपने-आप में अद्भुत है और मानवता के लिए एक गहन संदेश है।

आज जब मानवता अनेक संकटों, संघर्षों, तनावों, हिंसा, धार्मिक असहिष्णुता और पर्यावरणीय असंतुलन के दौर से गुजर रही है, तब बुद्ध का मार्ग करुणा, अहिंसा, मध्यमार्ग, आत्मनिरीक्षण और मानव कल्याण पहले से कहीं अधिक प्रासंगिक हो गया है।

सिद्धार्थ गौतम का जन्म लगभग 563 ई.पू. में लुंबिनी (वर्तमान नेपाल में) हुआ था। एक समृद्ध शाक्य कुल में जन्म लेने के बावजूद उन्होंने सांसारिक सुखों का त्याग कर सत्य की खोज में तप किया। बोधगया में पीपल वृक्ष के नीचे उन्होंने गहन ध्यान के बाद ज्ञान प्राप्त किया और "बुद्ध" बने। उन्होंने चार आर्य सत्य और अष्टांगिक मार्ग के माध्यम से दुखों से मुक्ति का मार्ग बताया।

चार आर्य सत्य हैं:
1. दुःख है
2. दुःख का कारण है
3. दुःख की निवृत्ति संभव है
4. दुःख से मुक्ति का मार्ग है —अष्टांगिक मार्ग।
अष्टांगिक मार्ग में सम्यक दृष्टि, सम्यक संकल्प, सम्यक वाक्, सम्यक कर्म, सम्यक आजीविका, सम्यक प्रयास, सम्यक स्मृति और सम्यक समाधि शामिल हैं।

वर्तमान समय में दुनिया जिस असंतुलन, मानसिक तनाव और विभाजन का अनुभव कर रही है, उसमें बुद्ध का मध्यम मार्ग और करुणा अत्यंत उपयोगी हो सकते हैं।

मानसिक स्वास्थ्य और ध्यान (Meditation):
आज का व्यक्ति मानसिक रूप से अत्यधिक व्यस्त और चिंतित है। कोरोना महामारी के बाद से चिंता, अवसाद और अकेलेपन की समस्याएं तेज़ी से बढ़ी हैं। 
बुद्ध ने ध्यान (विपश्यना) के माध्यम से मन को शुद्ध करने का मार्ग दिखाया। 

आज पूरी दुनिया में Mindfulness आधारित मेडिटेशन को मानसिक स्वास्थ्य के लिए वैज्ञानिक रूप से कारगर पाया गया है। यह सीधे बुद्ध की शिक्षा से प्रेरित है।

बुद्ध ने कभी भी किसी भी व्यक्ति, जाति, धर्म या वर्ग के विरुद्ध घृणा नहीं फैलाई। उन्होंने समानता, करुणा और प्रेम का उपदेश दिया। 
आज जब समाज में धार्मिक और जातीय तनाव बढ़ रहे हैं, तब बुद्ध की शिक्षा हमें सह-अस्तित्व की भावना सिखाती है।

बुद्ध का मध्यम मार्ग भोग और त्याग —दोनों की अतियों से बचने की सीख देता है। आज की उपभोक्तावादी संस्कृति, जो प्रकृति का दोहन कर रही है, उसे संतुलन की आवश्यकता है। यदि मानवता बुद्ध के मध्यम मार्ग का पालन करे, तो प्राकृतिक संसाधनों का सतत् और विवेकपूर्ण उपयोग संभव हो सकता है।

बुद्ध की शिक्षा केवल धार्मिक नहीं थी, बल्कि वह एक नैतिक और बौद्धिक पुनर्जागरण भी थी। उन्होंने अंधविश्वास, पशुबलि, कर्मकांड ,का विरोध किया। उनकी शिक्षा में तर्क, कारण और अनुभव का महत्व था।

(i) शिक्षण पद्धति में नवोन्मेष:
बुद्ध ने संवाद आधारित शिक्षण को प्राथमिकता दी। आज के शिक्षा तंत्र में भी विचार विमर्श, तार्किकता और आत्मचिंतन को समावेशित करना ज़रूरी हो गया है, जो बुद्ध के मार्ग का ही विस्तार है।

(ii) नैतिक शिक्षा की आवश्यकता:
भ्रष्टाचार, हिंसा, बलात्कार, स्वार्थ, छल — ये आधुनिक युग की विकृतियाँ हैं। ऐसे समय में पंचशील (सत्य बोलना, अहिंसा, चोरी न करना, ब्रह्मचर्य, मादक पदार्थों से दूर रहना) जैसे नैतिक सिद्धांत अत्यंत प्रासंगिक हैं।

बुद्ध का दृष्टिकोण राजनीति में भी अनुकरणीय है। उन्होंने गणराज्य प्रणाली का समर्थन किया और 'कल्याण राज्य' की अवधारणा दी। अशोक महान ने बौद्ध धर्म को राज्य नीति का आधार बनाकर अहिंसा, धर्म और जनकल्याण को प्राथमिकता दी।

आज जब राजनीति लाभ, वोट बैंक और धर्म के नाम पर बंट गई है, बुद्ध का उदाहरण नेताओं के लिए एक आदर्श हो सकता है। लोकतंत्र की आत्मा — सेवा, पारदर्शिता और उत्तरदायित्व —बुद्ध के सिद्धांतों में निहित है।

बुद्ध केवल भारतीय उपमहाद्वीप तक सीमित नहीं हैं। जापान, चीन, श्रीलंका, थाईलैंड, तिब्बत, म्यांमार, कोरिया और पश्चिमी देशों तक उनका प्रभाव है। संयुक्त राष्ट्र ने भी बुद्ध पूर्णिमा को "वेसाक डे" के रूप में मान्यता दी है।

आज जब वैश्विक स्तर पर युद्ध, साम्राज्यवाद, शरणार्थी संकट और असहिष्णुता का विस्तार हो रहा है, तब बुद्ध की शिक्षा मानवता के लिए प्रकाश स्तंभ बन सकती है। उन्होंने ‘अप्प दीपो भव’ (अपने दीपक स्वयं बनो) कहकर आत्मनिर्भरता और आत्मज्ञान का संदेश दिया।
आज के इंटरनेट, सोशल मीडिया और एआई के इस युग में सूचना का विस्फोट हो रहा है, लेकिन ज्ञान और विवेक का अभाव है। 
बुद्ध का मार्ग हमें यह सिखाता है कि सूचना के साथ साथ आत्मनिरीक्षण, मौन, ध्यान और विवेक भी आवश्यक हैं आज ट्रोलिंग, आक्रोश, झूठी खबरें और मानसिक थकान से समाज त्रस्त है। ऐसे में डिजिटल संयम, डिजिटल करुणा और डिजिटल नैतिकता की आवश्यकता है, जो कि बुद्ध की शिक्षाओं से प्रेरित की जा सकती हैं।

बुद्ध का महापरिनिर्वाण (कुशीनगर, 483 ई.पू.) एक आध्यात्मिक घटना थी। उन्होंने जीवन के अंतिम क्षणों में भी अपने शिष्य आनंद को यही कहा —“संघ और धर्म ही अब तुम्हारे मार्गदर्शक होंगे।” उन्होंने मृत्यु को एक प्राकृतिक परिवर्तन माना।
आज जब हम मृत्यु को केवल शोक और भय से देखते हैं, बुद्ध हमें यह सिखाते हैं कि मृत्यु एक सतत परिवर्तन है। इस बोध के साथ जीवन को सार्थक और जागरूक बनाना ही बुद्ध की अंतिम शिक्षा है।
बुद्ध जयंती, केवल एक धार्मिक उत्सव नहीं है, यह आत्मचिंतन का अवसर है। यह दिन हमें यह सोचने पर विवश करता है कि हम कैसे अपने भीतर के अंधकार को मिटाकर बोधि की ओर बढ़ सकते हैं।
ज्ञान प्राप्ति की प्रक्रिया आज भी जीवित है —हर व्यक्ति अपने भीतर बुद्धत्व की संभावना लिए हुए है। महापरिनिर्वाण का संदेश है —जीवन क्षणभंगुर है, परन्तु जागरूकता और करुणा के साथ इसे सार्थक बनाया जा सकता है।
आज के युद्ध-पीड़ित, तनावग्रस्त, असहिष्णु और लालच से ग्रसित समाज को यदि कोई मार्ग शांति, संतुलन और आत्मज्ञान की ओर ले जा सकता है, तो वह है —बुद्ध का मार्ग।

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