हादसा इस कदर नहीँ होता!

बरेली। प्रसिद्ध साहित्यिक संस्था लेखिका संघ बरेली की काव्य गोष्ठी मंकुश स्कूल महानगर कॉलोनी में आयोजित की गयी जिसकी अध्यक्षता कवियित्री मीरा प्रियदार्शनी ने की तथा मुख्य अतिथि  कवि शायर हिमांशु श्रोत्रिय निष्पक्ष जी रहे। 

गोष्ठी का शुभारम्भ अविनाश अग्रवाल द्वारा माँ शारदे की वंदना से हुआ। तत्पश्चात् गोष्ठी का विधिवत प्रारम्भ हुआ। संस्था की संरक्षक निर्मला सिंह ने अपना गीत पढ़ते हुए कहा कि..

मृग तृष्णा की प्यास बावरे कितनी बार बुझाले। जीवन भर ये नहीँ बुझेगी कितना मन समझाले।"

वरिष्ठ गीतकार कमल सक्सेना ने अपनी ग़ज़ल पढ़ते हुए कहा कि..

हादसा इस कदर नहीँ होता। दर्द दिल में अगर नहीँ होता। मैं तेरे अश्क़ संजो लेता अगर, मेरा दामन जो तर नहीँ होता।" जिस पर सभी ने जोरदार तालियाँ बजाईं।

हिमांशु श्रोत्रिय निष्पक्ष ने अपनी रचना कुछ ऐसे पढ़ी,,,

जो कंगूरों के आत्मज हों नींव का इतिहास क्या खाकर गढ़ेंगे।

जो स्वयं ही स्वर्ग मृग बनकर विचरते त्याग के दुष्कर ककहरे क्या पढ़ेंगे।"

संस्था की अध्यक्ष दीप्ती पांडे नूतन ने अपनी रचना पढ़ते हुए कहा कि.

बदलते वक्त की रफ्तार भी रुक जाती है। उसकी आंख भी शर्म से छुक जाती है। अगर जानती दर्द वो शमां नूतन का.

तो जलने से पहले ही क्यों ना बुझ जाती है।"

जिस पर सभी ने तालियां बजायीं।

राजेश गौड़ ने  ऑपरेशन सिन्दूर पर अपनी कविता पढ़कर वाहवाही लूटी।

संस्था की उपाध्यक्ष अल्पना नारायण ने अपनी खूबसूरत ग़ज़ल पढ़ते हुए कहा कि,,,

मासूमियत वो शरारत कहाँ है।

दिल में किसीके बशारत कहाँ है।"

मोना प्रधान ने अपनी कविता पढ़ते हुए कहा कि,,,

माँ धरती की गोद तले हम पलकर बड़े हुए जवान।

सिसक रही है आओ उस माँ के दुःख का ढूंढे कोई निदान।"

मीरा प्रियदार्शनी ने कहा कि..

केवल साँसों के चलने का नाम नहीँ होता जीवन। हर फुवार या उठी घटा को लोग नहीँ कहते हैँ सावन।"

 उमा शर्मा ने अपनी कविता इस तरह पढ़ी..

माँ तेरे हाथों के घेरे में सब कुछ रहता है।..

सुशीला धस्माना मुस्कान ने अपनी रचना कुछ ऐसे पढ़ी,,,

मानवों का कृत्य बन अभिशाप उनको छल रहा है। मृत्यु का यह खेल देखो इस धरा पर चल रहा है।"

अंशु गुप्ता ने अपनी रचना पढ़ते हुए कहा कि, धन्यवाद औऱ शुक्रिया का अंतर जान रहे हैँ। देखो हम ख़ुद को कैसे बाँट रहे हैँ। हमारी कलाई को चूड़ियाँ बजाने का शौक था सूनी कलाई हम चौखट पर आ रहे हैँ।"

अविनाश अग्रवाल ने अपनी ग़ज़ल पढ़ते हुए कहा.

कहाँ तक राहें उल्फत में मुसाफिर साथ चलते हैँ।

दुहाई देकर रस्मो की अलग फिर राह चलते हैँ।"

मीना अग्रवाल ने अपनी ग़ज़ल पढ़ते हुए कहा कि.

बड़ी मुफलिसी में ये दिन कट रहे हैँ।

मोहब्बत के सिक्कों को हम तरस रहे हैँ।

अनुराग त्यागी ने कहा कि.

क्यों मुफलिसी में आँसू बहाते हो। क्यों लोगों से हँसी बनवाते हो।"

नव्या त्यागी ने भी अपनी कविता. मैं बिगड जाऊँ औऱ तुझे बार बार जाने को कहूँ तू चला जायेगा क्या. सुनाई।

काव्य गोष्ठी का संचालन गीतकार कमल सक्सेना ने किया। सभी का आभार संस्था की उपाध्यक्ष अल्पना नारायण ने किया।

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