बुर्जुग धरोहर हैं!
बुजुर्ग
-मंजुल भारद्वाज
घर, समाज, देश, दुनिया
बुजुर्गों के अनुभव और आशीष पर फलती-फूलती है
बिना उनके आशीष के
हो तो सब सकता है
पर अधूरा अधूरा लगता है
सुकून नहीं मिलता!
आज भी सब अपने बुजुर्गों की
याद में विभोर हो जाते हैं
अपने दादा दादी
नाना नानी के किस्सों
कहानियों, जीवन अनुभूतियों की
यादों में भीग
रोमांचित हो जाते हैं!
खुमारी हम सब को घेरे लेती है
कई कागज़ की नाव में बैठकर
जीवन नैया पार कर जाते हैं
बुजुर्गों की झुरियां में
सदियां नाप जाते हैं!
बुर्जुग धरोहर हैं
ज्ञान, विज्ञान और विवेक की
ओर छोर हैं संस्कृति
संस्कार की!
पर क्या इतनी ही है
बुजुर्गों की दास्तान
या जैसे दीया स्वयं जलकर
प्रकाश देता है
पर उसके नीचे हमेशा
अंधेरा कायम रहता है
क्या ऐसा ही अंधेरा नहीं है
हमारे बुजुर्गो के आसपास!
आज बढ़ते वृद्धाश्रम
क्या इस अंधेरे का प्रमाण नहीं हैं?
कौन रह रहा है
इन वृद्धाश्रमों में
अमीर या गरीब
शिक्षित या अनपढ़?
थकी,बोझिल,धुंधलाती आंखों से
अपने ही चरागों की बाट जोहते
यह बुजुर्ग
आज कहां जा रहे हैं
कहां रह रहे हैं?
क्या यह सवाल हमें घेरते नहीं
कचोटते नहीं?
हां युवा पीढ़ी और बुजुर्गों के बीच
नए पुराने का संघर्ष चलता है।
यह संघर्ष विकराल और वीभत्स हो जाता है
जब नए बच्चों को
70 साल पुराने ढर्रे पर चलाने की जिद्द होती है!
नई और पुरानी पीढ़ी में
यह संघर्ष था
है
और रहेगा
सवाल यह है कि क्या यह संघर्ष
मानवीय गरिमा बनाए रखता है?
जिन्होंने जन्म दिया
नन्हें हाथों को हाथ दिया
एक एक कदम पर साथ दिया
चलना सिखाया
जीवन की राह दिखाई
उन बुजुर्गों के लिए
क्या राज्य व्यवस्था
समाज व्यवस्था अपनी
धरोहर को सहेजने के लिए
नीतिगत निर्णय लेती है
न्याय संगत विचार करती है?
जब व्यवस्था न्याय संगत विचार नहीं करती
तब बुजुर्ग भगवान की शरण में
किसी बाबा की शरण में मुक्ति खोजते हैं
यह भगवान और बाबा
बुजुर्गों को लील लेते हैं
कर्मकांड,पाखंड में जकड़ लेते हैं
धूमिल होती बुजुर्गों की स्मरण शक्ति का नाजायज फायदा उठा
आस्था की अंधी गली में छोड़ देते हैं
जहां से बुजुर्ग कभी
वापस नहीं लौटते!
क्या हमें अपने बुजुर्गों का
यही दर्दनाक अंत स्वीकार्य है?
क्या युवा पीढ़ी को
आज नहीं सोचना है कि
कल जब वो बूढ़े होंगे तो
उनका भी यही हाल होगा?
इसलिए तर्क सम्मत
विवेक सम्मत
पाखंड रहित
सत्यमेव जयते वाली
न्याय संगत
व्यवस्था का निर्माण हो
और
कोई भी बुजुर्ग विक्षिप्त ना हो
उसकी रगों में
सिंदूर नहीं
रक्त बहे !
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