कल तक जो मनुष्य थे!
कल तक जो मनुष्य थे..
- मंजुल भारद्वाज
आज सिर्फ आंकड़े हो गए!
कल तक जो ज़िंदा थे.
वो अर्थी और ताबूत हो गए!
किसी की कविता.
किसी का लेख.
किसी का नाटक.
किसी का पैकेज.
किसी का प्राइम टाइम.
किसी की ताली.
किसी की थाली.
किसी की पुष्प वर्षा.
बैंड बाजे की बारात हो गए!
कल तक देश का निर्माण.
करने वाले हाथ.
आज सिर्फ़ पेट हो गए!
भूख से लडने वाले.
भूख का शिकार हो गए!
वक़्त के गज़ब फेरे.
आंखों में उगने वाले.
ज़िंदगी के सवेरे.
..आज मौत के नासूर हो गए!
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