पसीना ही है, जो इस देश को ज़िंदा रखता है?
(एक सच्चाई)
[सीन 1: सुबह-सुबह का शहर, हल्का अंधेरा, गलियां सुनसान हैं]
"जब शहर अभी नींद में होता है... तब कुछ कदम ऐसे होते हैं जो जागते हैं। बिना शोर किए, बिना शिकायत किए... बस चलते हैं।"
[सीन 2: नगर निगम कर्मचारी झाड़ू लगाते हुए, कोई कूड़ा उठाते हुए, चेहरा पसीने से भीगा है]
"ये वो लोग हैं... जिनके हाथों में झाड़ू है, पर दिल में इज्जत है। जो शहर की सफाई में खुद को खो देते हैं... ताकि हम सुकून पा सकें।"
[सीन 3: एक सब्जी वाला रेहड़ी धकेलता है, पीछे से सूरज उग रहा है]
"ये वो हैं... जो सुबह की ठंडी हवा में भी उम्मीद के गर्म एहसास के साथ निकलते हैं। ताजी सब्जियाँ लेकर, हर चेहरे पर ताजगी लाने के लिए।"
[सीन 4: नाला सफाई करने वाला, घुटनों तक पानी में खड़ा]
"गंध, गंदगी, थकान... सब सहते हैं। पर कभी मुंह नहीं फेरते... क्योंकि ये जानते हैं, काम कोई छोटा नहीं होता।"
[सीन 5: एक महिला कूड़ा गाड़ी में बाल्टी खाली कर रही है, बच्चे स्कूल को तैयार हो रहे हैं]
"कमाई कम होती है, जिम्मेदारियाँ ज्यादा। फिर भी एक मुस्कान होती है उनके चेहरे पर... जैसे कह रही हो – हम हार नहीं मानते।"
[सीन 6: शहर के चमकते रास्ते, सफाई की हुई सड़कें, फल-सब्जियों की रंग-बिरंगी रेहड़ियाँ]
"ये वही लोग हैं, जिनके बिना शहर साँस भी नहीं ले सकता। जिनके बिना हमारी सुबह अधूरी है... और जीवन असंभव।"
[सीन 7: – सभी मजदूर एक लाइन में चलते दिखते हैं, पीछे सूरज ढल रहा है]
"नाम नहीं होता इनके काम पर, ताली नहीं बजती इनके लिए।
पर हर ईंट, हर गली, हर मुस्कान... इनकी मेहनत से बनी है।
इनका पसीना ही है, जो इस देश को ज़िंदा रखता है।"
"सलाम उन सभी मेहनतकश लोगों को, जो हर दिन एक बेहतर कल के लिए जीते हैं।
मै,
शिवांश पाण्डेय
आप लोगो का दिल से शुक्रिया करता हूं
जो आप लोग हम लोगो के लिए इतनी मेहनत करते है।
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