कामुकता की धारा

हेमन्त कुशवाहा
नग्नता एवं अश्लीलता की धारा में बहती भारतीय संस्कृति जिसकी परिणति निश्चित तौर पर विकृत एवं संक्रमित होकर रहेगी जिसके लिए पूर्ण रूप से भारतीय सिनेमा जगत, मुंबई ही जिम्मेदार ही नहीं बल्कि जबरदस्ती से अमीर कहलवाने वाले लोग भी हैं। जिनकी शह व सिनेमा जगत के कारण नई युवा पीढ़ी पूरी तरहा नग्नता एवं अश्लीलता के दौर से गुजर ही नहीं रही बल्कि उनकी तरह अधोवस्त्र पहनकर अपने शरीर के एक-एक अंग का कामुक प्रदर्शन कर रही हैं जिसके साथ ये वैवाहिक संबंधों को भी प्रभावित कर रहा है। 
तलाक संबंधित मामलों की संख्या दिन-प्रतिदिन परिवार न्यायालयों में देखी जा सकती है जानते हो इनके बीच का मुख्य विवाद बिंदु क्या है
शायद पर पुरुष व महिला का एक दूसरे से रिलेशनशिप बनाये रखना व दैहिक संबंध स्थापित करना ठीक इसी तरह से मेट्रो सिटी में नौकरी कर रहीं लड़कियों का विवाह से पूर्व रिलेशनशिप में रहना व बरसों तक शारीरिक संबंध बनाने रखना। 
दुनियां से यूँ कहना कि मुझे पहले अपना कैरियर बनाना है अभी शादी की कोई जल्दी नहीं है।
जो मुख्य रूप से कामुकता की धारा में बह रहीं हैं ऐसे हालात में क्या कोई परिवार अपने पुत्र के लिए एक सामाजिक, संस्कारिक, व शारीरिक रूप से पवित्र 'पुत्र वधू' की कल्पना कर सकता है या किसी लड़की का कौमार्य सुरक्षित समझा जा सकता है जिसको ज्यादा समझने के लिए आप किसी रेस्टोरेंट, होटल, पार्क, पिकनिक स्पॉट, कालेज कैंटीन, जिम आदि जगह पर ऐसे तमाम युगलों को अश्लील हरकतें देखते व साथ रहते हुए इनकी गतिविधियों व इनकी सोच को बेहतर समझा जा सकता है यानि आगे की आने पीढ़ी 90 फीसदी के आसपास देखी जायेगी जिसके लिए सोशल मीडिया पूरी तरह से अपनी जिम्मेदारी निभा रहा है। जो महिलाओं को पूरा नग्न करके ही दम लेगा और हां अगर कोई ऐसी बातों पर प्रश्न चिन्ह लगाता है तो लोग उसे रूढ़िवादी व एक परम्परावादी सोच का बताते हैं और खुद को आधुनिक सोच का' लेकिन याद रखें कि रूढ़िवादी सोच व परम्पराओं से ही संस्कारिक व परिवार जीवन चलता है।जिसमें उन पारिवारिक महिलाओं के संबंध 'गैर पुरुष' से नहीं होते हैं जबकि आधुनिक दौर में ये बहुत सामान्य है जिसके बगैर वो जी नहीं सकती हैं।
यानी इस आधुनिकता व खुलेपन के कारण से ही अब ना कहीं कोई परिवार है और ना कहीं कोई खानदान है और अगर है तो सिर्फ नाम का है जिनमें  औपचारिकताओं के सिवा भावनाओं का कोई तल नहीं है।

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