गिद्धों का झुंड

महाशक्तिशाली गिद्ध 

मंजुल भारद्वाज 

कहां हैं सभ्यताओं के पैरोकार?

जब अपनी अपनी भौगोलिक सीमाओं में कैद 

और अपनी सीमाओं के बाहर 

जन, जल, जंगल, ज़मीन को

गिद्ध नोच रहे हैं!


कहां हैं इंसानियत के ख़ैर-ख़्वाह?

जब हर पल इंसान 

और 

इंसानियत का क़त्ल हो रहा है!


कहां हैं वो विज्ञान के हिमायती?

जब विज्ञान पूरी दुनिया को

लहूलुहान कर 

नेस्तनाबूद कर रहा है!


कहां हैं वो हाथ?

जो सफ़ेद, काले, नीले,

पीले, हरे, केसरी, लाल झंडे उठाए 

इंसानी अधिकारों को महफूज़ रखने का

 ख़्वाब संजोते थे!


कहां हैं वो बुद्धिजीवी?

जो मनुष्य देह लिए भीड़ को

इंसानी राह दिखाने का

दंभ भरते थे!


कहां हैं वो?

बुद्ध और गांधी के

कसीदे पढ़ने वाले 

जो अहिंसा और शांति का 

ख्वाब देखते थे!


कहां हैं वो दलाल ?

जो इंसान को नोचते 

गिद्धों के झुंड को

विकसित कहते हैं!


कहां हैं वो?

जो जनता की आवाज़ 

बनते थे!


विकास, विज्ञान

सभ्यता, संस्कृति, मानवता

यह पाखंड हैं?

सत्य है 

गिद्धों का झुंड

जो ज़िंदा इंसानों को

खा रहा है!


सत्य है 

गिद्धों का लाइव प्रसारण

और पॉप कॉर्न खाते हुए 

उस प्रसारण का देखा जाना!

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