पंखों की बात 'उड़ता'

मैं हूँ—उड़ता

सुरेंद्र सैनी बवानीवाल "उड़ता” झज्जर (हरियाणा)

हवा से कुछ फुसफुसाहट सी हुई,

जैसे किसी ने उड़ान की बात की।

नीले आसमान के पार कहीं,

मन ने फिर उम्मीदों की बात की।


धूप ने छूकर कहा —"चलो, आगे बढ़ो",

छाँव ने मुस्कुरा कर कहा —"मैं भी साथ हूँ।"

काँटों ने चुभकर जो सबक दिया,

फूलों ने वहीं जीवन की बात की।


टूटे सपनों की किरचों से बना,

मैंने इक नया सपना बुन डाला।

डर की दीवारें जो ऊँची थीं बहुत,

उन पर हौसलों ने पतंग सा रंग डाला।


हर गिरावट में मैंने उड़ान देखी,

हर आँसू में चमकती जान देखी।

मैं रुकूं भी तो कैसे, जब रगों में

उम्मीदें हवा सी बहती जान देखी।


अब नाम मेरा कोई पूछे अगर,

मैं मुस्कुरा के कह देता हूँ बस—

"मैं हूँ वो, जो थमता नहीं,

मैं हूँ—उड़ता।" 


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