इस कदर हम ज़िन्दगी हारकर बैठे रहे!
बरेली। लेखिका संघ बरेली के तत्वाधान में होटल पॉस टेबल राज स्वीट में काव्य गोष्ठी का आयोजन किया गया.।
काव्य गोष्ठी के मुख्य अतिथि खनऊ से आये प्रसिद्ध कवि साहित्य भूषण कमलेश मौर्य मृदु रहे, दीप प्रज्जवन के पश्चात कार्यक्रम का विधिवत शुभारम्भ हुआ।
माँ वाणी की वंदना डा किरण कैंथवाल ने बड़े ही मधुर स्वर से करके कार्यक्रम को सुशोभित किया।
लखनऊ से आये कवि साहित्य भूषण कमलेश मौर्य मृदु ने नारियों पर अपनी कविता पढ़ते हुए कहा कि.
- नारियों व्यर्थ बनाव श्रृंगार संवार न कामकला दिखलाओ।
- भोग्या नहीं तुम व्यक्ति की शक्ति बनो देशभक्ति के भाव जगाओ।
- पत्नी बनो तो रत्नावली सी फिर भारत में तुलसी उपजाओ।
- माता बनो तो शकुंतला सी शिशुओं से ही सिंह के दांत गिनाओ।।
जिस पर सभी कवियों ने जोर दार. तीलियाँ बजायी।
वरिष्ठ गीतकार कमल सक्सेना ने अपनी ग़ज़ल कुछ इस तरह पढ़ी..
- "इस कदर हम ज़िन्दगी हारकर बैठे रहे।
- घर हमारा था मगर हम द्वार पर बैठे रहे।
- नाव में बैठे ही थे वे मिल गया साहिल उन्हें, हम मगर सातों समंदर पार कर बैठे रहे।
जिस पर सभी ने दिल खोलकर तालियां बजायीं।
संस्था की अध्यक्ष दीप्ती पांडे नूतन ने कहा कि
अलग अलग धर्मों में हैँ ये तो गलत नहीँ.।
आपस में एक दूजे का अपमान ये भी तो उचित नहीँ। हिमांशु श्रोत्रिय निष्पक्ष ने अपनी ग़ज़ल इस तरह पढ़ी..
अँधेरों की गिरफ़्तारी तो होगी।
कभी ये रात अंधयारी तो होगी।
रणाँगन में निनादित शंख है तो,
कहीं पर आरती प्यारी भी होगी।
अंशु गुप्ता ने बेटियों पर अपनी कविता पढ़ते हुए कहा कि..
घर की मुंडेरो से झाँकती ये बेटियाँ। घर की दहलीज को लांघती ये बेटियाँ।
घर की चौखट पर मन्नत के धागे सी बेटियाँ, बाबा के चश्मे की रोशनी ये बेटियाँ।
गोष्ठी की संयोजक उमा शर्मा ने अपनी भावनाओं को इस तरह से उकेरा मत जगाना गीत गाकर आज मेरी पीर सोई। अब न मुझको याद आये अब न मुझको याद कोई।
अनुराग त्यागी ने कहा कि..
सजा दो सेज अब मुझे सोना है।
देख लिया सब कुछ अब औऱ क्या होना है।
मोना प्रधान ने कहा कि..
चले थे वो हमें मिट्टी में मिलाने मगर,
मैं तो बीज थी मिलते ही जड़े ज़माने लगी।
अविनाश अग्रवाल ने अपनी ग़ज़ल पढ़ते हुए कहा कि..
कहाँ तक रहे उल्फत में मुसाफिर साथ चलते हैँ।
दुहाई देके रस्मो कि अलग फिर राह मिलते हैँ।
मीना अग्रवाल ने अपनी ग़ज़ल पढ़ते हुए कहा कि..
आज कसम तो खाली तुझे भूलने की, आने वाले कल से मगर फिर डर लगता है।
नवोदित कवियित्री नव्या त्यागी ने कहा कि
दूरियां बढ़ती गयीं सिर्फ एहसास रहते गये, उन्होंने हमें माँगा ही नहीँ औऱ हम कुबूल कहते गये।
शिवांश शर्मा ने अपनी कविता कुछ ऐसे पढ़ी..
मैं दिन हूँ मेरी शाम तुम हो.मैं नींद हूँ मेरा ख़्वाब तुम हो। मैं शब्द हूँ मेरी बात तुम हो। मैं तब हूँ जब मेंरे साथ तुम हो।
मीरा प्रियदार्शनी ने अपनी कविता पढ़ते हुए कहा कि,,
वारिस ने दी जब दस्तक दरवाजे पर,
महसूस हुआ तुम आये हो, ख़्वाब तुम्हारे जैसा था।
संस्था की महासचिव डा किरण कैंथवाल ने अपना गीत पढ़ते हुए कहा कि.
- भीनी भीनी खुशबु आती मौसम ये बेताब है।
- वर्षा ऋतु का आया मौसम हरियाली पर शबाब है।
इंद्रदेव त्रिवेदी ने बादल औऱ गुड़धानी पर सुंदर गीत पढ़ा।
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