चक्र-परिमाण!
वर्तमान
-मंजुल भारद्वाज
वर्त का अर्थ है
चक्र
मान का अर्थ है
परिमाण
कालचक्र की गति का
परिमाण है
वर्तमान !
इस पल का कर्म
काल के वर्त में घूमता है
उसका एक अंश
अभी इस पल को जीने में
खप जाता है
दूसरा अंश खपने की
पचन – अपचन क्रिया में
मल मूत्र और जीवन सत्व में
बंट जाता है
मल मूत्र नित्यकर्म में उत्सर्जित हो जाता है
पर सत्व जीवन चैतन्य को
आलोकित करता है !
यह आलोक दृष्टि को समृद्ध करता है
दृष्टि का समृद्ध होना ही
भविष्य को साधना है
दृष्टि का आलोकित होना ही
काल को साधना है !
इसलिए इस पल का जीना
आपके नज़रिये का निर्माण करता है
जैसे
बरसात का पानी बह निकलता है
पर भूमि उसका एक अंश
अपने अंदर समो लेती है
और
तपते सूर्य में जीवन को आब देती है
इसी तरह वर्त के जीवन काल का
शब्द संचय संग्रहण अनिवार्य है
भविष्य के लिए !
वर्त में ही जन्मता है
भविष्य
और
वर्त ही लिखता है
इतिहास !
Comments
Post a Comment