नारी की अपनी रचना
सिंदूर ऑपरेशन
(नारी शक्ति और साहस को समर्पित)
धधक उठी जब पीड़ा भीतर,
टूटी थी वो चुप्पी पुरानी।
एक रंग था जो लहू सा गाढ़ा,
सिंदूर नहीं, थी वो बलिदानी।
जिसने समझा वो श्रृंगार,
दरअसल था एक व्यापार।
चुपचाप सहती रही वो नारी,
पर अब जागी, टूटा सब भार।
सिंदूर ऑपरेशन — था नाम,
सिर्फ़ इलाज नहीं, था पैग़ाम।
"अब न होगी ये पहचान,
जो बने ज़ंजीर, दे अपमान।"
साहस की एक किरण जली,
चुप्पी ने आवाज़ भरी।
सिंदूर नहीं अब बंदिश होगी,
नारी अपनी रचना करेगी।
ना बिंदी, ना कंगन, ना कोई साज,
स्वतंत्रता ही उसका ताज।
अब न होगा ये कोई सवाल,
सिंदूर नहीं, है उसका कमाल।
चल पड़ा जो ये अभियान,
बना हिम्मत का प्रमाण।
नारी अब खुद को जानेगी "उड़ता"
हर जंजीर को पहचान के तोड़ेगी।
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