आपातकाल भारतीय लोकतांत्रिक इतिहास का कला व भयावह अध्याय था -मृदु
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आपातकाल के समय भूमिगत आंदोलन में सक्रिय साहित्य भूषण कमलेश मौर्य मृदु बरेली में हुए सम्मानित |
उत्कर्ष ललित कला अकादमी के तत्वावधान में आयोजित इस संगोष्ठी की अध्यक्षता करते हुए श्री मृदु ने आपातकाल के अनेकानेक संस्मरण सुनाते कहा आपातकाल भारतीय लोकतांत्रिक इतिहास का कला व भयावह अध्याय था जिसे कांग्रेस सरकार की तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी द्वारा अपनी कुर्सी बचाने के लिए समूचे देश पर थोपा गया था।
डीआईआर व मीसा जैसे कानूनों विपक्षी नेताओं सहित लगभग सवा लाख निर्दौष लोगों को जेलों में ठूंस दिया गया था। मानवाधिकार समाप्त कर दिए गए थे व समाचार पत्रों पर सेंसर थोप दिया गया था। जेलों में और बाहर हजारों निर्दोष लोगों पर अमानुषिक अत्याचार किये गये व उन्हें कठोर यातनाएं दी गईं।
श्री मृदु ने बताया उस समय वे लखनऊ विश्वविद्यालय के सुभाष छात्रावास में रहकर विज्ञान स्नातक की पढ़ाई कर रहे थे व भूमिगत आंदोलन में सक्रिय थे व अनेक बार जेल जाते जाते बचे।
उन्होंने उस समय की रचना के माध्यम से अमानुषिक अत्याचारों का जीवंत चित्रण किया यदि कहीं यातना शिविरों का तुमने शतांश देखा होता, तो सच कहता हूं असहनीय पीडा से हृदय दहल जाता।
पत्थर दिल व्यक्ति पिघल जाता।।
जब पैशाचिकता के आगे मानवता चीखी चिल्लाई।
लेकिन दानवता के मन में बिल्कुल भी दया नहीं आई।।
जब काशी के गुदोलिया चौराहे पर संघ के प्रचारक श्री जवाहर को कुत्तों से नुचवाया।
कितने ही छात्रों को नंगा कर जलती सिगरेटों से दगवाया।।
अब भी लखीमपुर के स्वदेश के नाखूनों में विद्यमान।
जो गईं चुभोईं आलपिने उन के जीवित जागृत निशान।।
जब शाहजहांपुर के अध्यापक श्रीराम को पीट पीट कर उनका जबड़ा तोड़ दिया।
कितनों के घुटनों को तोडा़ लूला लंगड़ा कर छोड़ दिया।।
दम तोड़ दिया कितनों ने ही यह विकट यातनाएं सहते।
थक जाओगे सुनते गिनते।।
यदि पत्रकार यदुनंदन को तुमने पिटते देखा होता तो सच कहता हूं असहनीय पीडा से हृदय दहल जाता।
पत्थर दिल व्यक्ति पिघल जाता।।
लोकतंत्र रक्षक सेनानी राजेन्द्र सिंह पुंडीर ने कहा उस समय का आलम तो यह था कांग्रेस कार्यकर्ताओं द्वारा स्थान स्थान से तैयार की गई सूचीके आधार पर बग़ैर किसी जांच-पड़ताल के पुलिस जिसे चाहे जेल भेज देती थी।
कहीं सुनवाई नहीं थी न दलील न अपील न वकील। उस समय जयप्रकाश नारायण के संरक्षण में गठित लोकतंत्र रक्षक समिति के माध्यम से पूरे देश में भूमिगत आंदोलन चलाया गया जिससे घबरा कर अंततोगत्वा उन्नीस माह पश्चात लोगों को जेलों से छोडा गया।
इसी क्रम में कमल सक्सेना ने भी अपने विचार व्यक्त किये। संगोष्ठी का संचालन रोहित राकेश ने किया। वंदेमातरम् के साथ संगोष्ठी का समापन हुआ।
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