एक लोकसेवक के लोकछवि की पराकाष्ठा -मुकेश कुुमार मेश्राम


राजेश चन्द्रा

भारतीय प्रशासनिक सेवा यानी आईएएस पदनाम के 'सेवा' शब्द को सार्थक व साकार देखना हो तो कोई उत्तर प्रदेश शासन के वरिष्ठ आइएएस अधिकारी Mukesh Kumar Meshram  जी को देखे।

26 जून,1967 को मध्यप्रदेश के आदिवासी बाहुल्य क्षेत्र 50% से अधिक वनाच्छादित जनपद बालाघाट लालबर्रा तहसील के ग्राम बोहरी के जंगलों के बीच के स्थित बस्ती के अतिशय वंचित परिवार में जन्मे मुकेश कुमार मेश्राम सर पैदाइशी प्रबल इच्छाशक्ति के व्यक्तित्व रहे हैं और भारतीय प्राशासनिक सेवा में वरिष्ठता के ऊँचे पायदान पर बैठे होकर भी उन्हें अपनी पारिवारिक पृष्ठभूमि की चर्चा करते हुए कोई हिचक या संकोच नहीं होता है। आपके व्यक्तित्व की यह निर्भीकता उन्हें देश के युवाओं के सामने एक प्रेरक नायक, रोल माॅडल बनाती है।

आपकी जनहितकारी कार्यशैली स्वयं दर्शाती है कि उन्हें अपने दिन भूले नहीं हैं और वंचित वर्ग के प्रति उनका भावनात्मक लगाव उनके प्रशासनिक सेवा का अङ्ग बना हुआ है।

जब वे उत्तर प्रदेश के जनपद कानपुर के जिलाधिकारी हुए तो झुग्गी झोंपड़ियों, मलिन, वंचित बस्तियों में रहने वाले बच्चों को शिक्षित करने के लिए एक अभियान चलाया, "विद्यादान योजना" जिसके अन्तर्गत स्कूल बैग बनाने वाले व्यापारियों तथा अधिकारियों के स्वैच्छिक योगदान से वंचित बच्चों को न केवल स्कूल बैग, पुस्तकें, स्टेशनरी उपलब्ध करायी बल्कि अधिकारियों द्वारा बच्चों को पढ़ाया भी गया। एक आईएएस अधिकारी द्वारा शूरू की गयी इस अनूठी योजना की चर्चा सुदूर पूर्वोत्तर के मिजोरम के अखबारों में छपी।

लीक से हट कर अपनी प्रशासनिक सीमा के अन्दर जनहितकारी काम करना श्री मुकेश के व्यक्तित्व का नैसर्गिक गुण है और लोकसेवक के पदनाम को वे सच्चे अर्थों में सार्थक करते हैं।

आगरा में जिलाधिकारी हुए तो ताजमहल को विश्वमंच पर ला कर ही संतुष्ट हुए। ताजमहल को विश्व के सात आश्चर्यो में शामिल करने का जन-अभियान चलाया और अंतत: सफल रहे। 

अपने कार्यालय में बैठ कर पारम्परिक शैली में बैठकें करना, पत्रावलियों का निस्तारण करना, कार्यक्रमों में मुख्य अतिथि बनकर व्याख्यान देना, आगन्तुकों से मुलाकातें करना, यदाकदा छापेमारी वाले दौरे करना, ये सब तो सब अधिकारी करते हैं लेकिन कोविड काल में सड़क पर घूमते लावारिस कुत्तों को सुबह-सुबह डबल रोटी कौन आईएएस अधिकारी खिलाता है? यह अनूठा काम उन्होंने उस दौर में किया जब कोरोना-काल में सड़कों पर कर्फ्यू जैसा सन्नाटा था, इंसानों के खाने के लाले पड़ गये थे तब लखनऊ मंडल के कमिश्नर मुकेश कुमार मेश्राम सुबह-सुबह अपनी गाड़ी में ब्रेड के पैकेट लेकर निकल लेते थे और उनकी गाड़ी देखते ही वो बेबोलते जानवर बच्चों की तरह पीछे लग जाते थे। संवेदनशीलता की यह पराकाष्ठा का नाम मुकेश कुमार मेश्राम है। इसी अवधि में उन्होंने बालाघाट के आदिवासी इलाकों में भोजन, वस्त्र वितरण का अपने सम्पर्कियों व स्रोतों से लगभग साल भर तक अखण्ड अभियान चलाया और अभी भी उस वंचित इलाके में विद्यालय स्थापित करने के लिए स्थानीय लोगों को प्रेरणा देते रहते हैं।

एक लोकसेवक की लोकछवि की भी यह पराकाष्ठा ही कही जाएगी कि जब जनपद महोबा से सर का स्थानान्तरण हुआ तो जनता ने सड़कों पर लेट कर आपकी गाड़ी को आगे जाने से रोका।

प्राय: अधिकारियों पर पार्टियों के पक्षधर होने के झूठे-सच्चे आरोप लगते रहते हैं लेकिन अपनी निष्पक्ष कार्यशैली के कारण श्री मुकेश सर हर सत्ताकाल के चहेते अफसर रहे हैं। आज भी वे सरकार ने नवरत्न अधिकारी हैं।

सन् 1995 बैच के आईएएस अधिकारी श्री मुकेश कुमार मेश्राम सर अपने कुशल प्रशासन के लिए पहली बार चर्चा में 1998 में गोरखपुर में पहली तैनाती के दौरान आए। जनपद में बाढ़ आ गयी और बाढ़ राहत में लिप्त भ्रष्ट प्रधानों पर उन्होंने निर्भीक दण्डात्मक कार्यवाही कर दी।

एक उच्चाधिकारी होते हुए भी उनके सामाजिक व मानवीय सरोकार कितने गहरे हैं, इसका उदाहरण है सास-बहू सम्मेलन। जनपद आजमगढ़ में तैनाती के दौरान उन्होंने इस अनूठे 'सास-बहू सम्मेलन' की शुरुआत की और अधिकांश पारिवारिक विवादों का निपटारा इन सम्मेलनों के जरिये किया।

अधिकांश व्यक्ति 'इस्तेमाल करो और छोड़ दो - यूज एण्ड थ्रो की नीति पर चलते हैं, लेकिन अभी फरवरी'2023 में दक्षिण कोरिया का छ: सौ बौद्घ पर्यटकों का एक पर्यटक दल जब लखनऊ आया तो होटल रमादा में एक किशोर ने आगे बढ़ कर सर के पैर छुए और पीछे खड़े व्यक्ति ने कहा- सर, यह मेरा बेटा है। मैं इतना ही बड़ा था जब पहली बार मेरठ में आपसे मिला था। 

यह आवाज कोरियाई दल के भारतीय नायक डा. हिरो हितो की थी जो श्री मेश्राम सर से तब से जुड़े हैं जब सर सन् 2006 में मेरठ में विक्टोरिया पार्क के भीषण अग्निकांड के बाद अचानक जनपद मऊ से स्थानान्तरित करके तैनात किये गये थे। वह अग्निकांड में 72 लोगों की मौत हो गयी थी, 250 से अधिक लोग घायल हो गये थे और सर के मानवीय आह्वान पर घायलों के इलाज के लिए जनता ने एक करोड़ रुपया इकट्ठा करके दिया था।

जर्मनी से आए तथा दुबई में एक पेट्रोकेमिकल कम्पनी के मालिक डा. पी के सिंह जी से परिचय कराते हुए सर ने बताया- यह मेरे चालीस साल पुराने मित्र हैं।

सलीम जावेद साहब कहते हैं- बड़ा आदमी वह है जिसके दोस्त पुराने हों…

इसके पूर्व वर्ष 2003 में बांदा में तैनाती के दौरान सर ने भेष बदल कर भिन्न-भिन्न विभागों का दौरा किया और भ्रष्ट अधिकारियों पर कार्यवाही की।

उनके दिये नारे, स्लोगन विभागों के ध्येय वाक्य बन गये हैं। पर्यटन व संस्कृति विभाग सम्हालते ही ये विभाग जिन्दा हो गये। उन्होंने स्लोगन दिया- यूपी नहीं देखा तो इंडिया नहीं देखा। और देखते ही देखते इण्डिया तो क्या पूरा विश्व यूपी देखने के लिए उमड़ पड़ रहा है। विदेशी पर्यटकों को प्रदेश में आकर्षित करने के लिए उन्होंने 'आध्यात्मिक पर्यटन', स्पिरीचुअल टूरिज्म’ की एक नयी अवधारणा, कान्सैप्ट दिया है। दीपोत्सवों के आयोजनों को तीन बार गिनीज बुक में दर्ज करा दिया। ड्रोन-शो के कीर्तिमान स्थापित किये।

उनका अध्ययन है कि 20% रोजगारों का सृजन अकेले पर्यटन उद्योग करता है और उत्तर प्रदेश धार्मिक पर्यटन का भी प्रमुख केन्द्र है। दक्षिण पूर्व एशिया के बौद्घ देशों के पर्यटकों में से बमुश्किल 5% पर्यटक हम आकर्षित कर पा रहे हैं। यदि पर्यटन स्थलों को हम उन्नत सुविधाओं से सुसज्जित कर दें तो उत्तर प्रदेश में "आध्यात्मिक पर्यटन" की भी अपार सम्भावनाएं हैं। 

अपने मौलिक उत्स में वे स्वयं भी गहरे आध्यात्मिक व्यक्तित्व हैं। परिग्रह,  निस्पृहता, अनासक्ति, सेवा, मासूमियत, अन्तरानुभूति और अज्ञात का आकर्षण उनकी आँखों में चमकता है। 

भारत और दक्षिण कोरिया के राजनयिक सम्बन्धों की 50वीं वर्षगांठ के उपलक्ष्य में दक्षिण कोरिया के जोग्ये बौद्घ संघ के 108 बौद्घ भिक्षुओं ने भारत के बौद्घ तीर्थों की 43 दिन में पदयात्रा की। 

इस अवधि में उत्तर प्रदेश पर्यटन ने समस्त बौद्घ स्थलों पर कोरियाई दल को उच्च स्तर की सत्कार सेवा प्रदान की और यात्रा के समापन पर स्वयं मा. मुख्यमंत्री ने कोरियाई दल का लखनऊ मेें अभिनन्दन किया। परिणामस्वरुप कोरिया से उत्तर प्रदेश में बड़ा निवेश भी आया। लगभग सत्रह देशों के पर्यटकों को अन्तरराष्ट्रीय त्रिपिटक संगायन के जरिये उत्तर प्रदेश की ओर आकर्षित किया। 

एक अनुबन्ध करके प्रत्येक वर्ष उत्तर प्रदेश के बौद्ध पर्यटन स्थलों पर विदेशी बौद्घ पर्यटकों को आकर्षित करने के दृष्टिगत धम्मयात्राओं वार्षिक समारोह बना दिया है। आज लखनऊ में गोमतीनगर विस्तार में एलडीए के जो गंगा, यमुना, सतलज, गोदावरी नामक बहुमंजिला अपार्टमेन्ट दिखायी देते हैं वह श्री मुकेश सर की उस समय की परिकल्पना है जब वे एलडीए के वीसी थे। जनेश्वर मिश्र पार्क की अधिकांश हरियाली और पेड़ उसी अवधि के हैं। 

लखनऊ के आलमबाग में पीपीपी माॅडल पर बना अत्याधुनिक बस अड्डा भी उस अवधि की देन है जब आप परिवहन विभाग में प्रबन्ध निदेशक थे।

होली-दीवाली व अन्य पर्वों पर अधिकारियों को लोग मेवे-मिठाई के डिब्बे उपहारस्वरूप देते हैं। प्राय: ऐसे हर पर्व पर वे मेवे, मिठाई के डिब्बे अनाथाश्रमों, निराश्रित बाल सदनों अथवा अस्पतालों में तीमारदारों के बीच बांटते हैं और अपने जन्मदिन को भी महाशय ऐसे ही मनाते हैं। सर का प्रारम्भिक जीवन बेहद अभावों में बीता है। 

पांच किलोमीटर तक पैदल चल कर पढ़ने के लिए स्कूल जाते थे। कुदरत ने उन्हें तीन दौलतें देकर पैदा किया था- मेहनत, ईमानदारी और प्रतिभा। 

“ग्रामीण प्रतिभा छात्रवृत्ति" में उनका  चयन हुआ। तदोपरान्त नेशनल इंस्टीट्यू आफ टेक्नोलाजी" (एनआइटी) भोपाल से आर्किटेक्चर में बीटेक किया। तदोपरान्त आईआईटी रुड़की से आर्कीटेक्चर में एमटेक किया। 

वे भारत के पहले ऐसे आर्कीटेक्चर हैं जिन्होंने अपना शोधपत्र हिन्दी में प्रस्तुत किया। उनका कहना है कि भारतीय अवस्थापनाओं, इन्फ्रास्ट्रक्चर पर पश्चिमी आर्किटेक्चर हावी है जो न केवल अत्यन्त खर्चीला होता है बल्कि स्थानीय आवश्यक्ताओं के प्रतिकूल भी होता है। वास्तव में वास्तु स्थानीयताओं पर आधारित होना चाहिये। 

प्राचीन व पारम्परिक वास्तु के सघन अध्ययन पर आधारित यही उनके शोधपत्र का विषय भी है।

वर्ष 1995 में श्री मुकेश सर का चयन भारतीय प्रशासनिक सेवा में हो गया और उन्हें यूपी कैडर मिला।

आज न केवल प्रदेश में बल्कि देश के उत्कृष्ट आईएएस अधिकारियों में उनकी गणना है।

जन्मदिन की हार्दिक शुभकामनाएं।

(प्रक्रियाधीन पुस्तक का एक अंश)

Comments

Popular posts from this blog

ग्राम प्रधान, सचिव और चार सदस्य मिलकर लूट रहे पंचायत का सरकारी धन?

सड़क पर जर्जर गाड़ियाँ और खुले में मरम्मत कार्य से जनता परेशान

हर नागरिक का सहयोग हमारा संबल है -सुषमा खर्कवाल