"सस्ता श्रम" नहीं बल्कि "सशक्त भागीदार" के रूप में आउटसोर्सिंग वर्ग देखें

आउटसोर्सिंग वर्ग कर्मचारी. सरकार के लिए महत्त्वपूर्ण स्तंभ..
तेजपाल मौर्य
भारत जैसे विशाल और विविधताओं से भरे देश में सरकारी तंत्र को सुचारु रूप से चलाने के लिए बड़ी संख्या में कार्यबल की आवश्यकता होती है। 
सरकारी कामकाज का दायरा शिक्षा, स्वास्थ्य, स्वच्छता, सुरक्षा, परिवहन, सूचना प्रौद्योगिकी, प्रशासन आदि क्षेत्रों तक फैला हुआ है। ऐसे में जब नियमित सरकारी पद सीमित हों, तो सेवाएं निर्बाध रूप से चलाने के लिए "आउटसोर्सिंग" एक व्यावहारिक और लागत प्रभावी समाधान बनकर उभरा है।

"आउटसोर्सिंग वर्ग कर्मचारी" यानी वे कर्मचारी जो किसी निजी एजेंसी या ठेकेदार के माध्यम से अस्थायी रूप से नियोजित होते हैं, परन्तु सरकारी कार्यालयों, विभागों, या योजनाओं में कार्य करते हैं। वे भले ही प्रत्यक्ष रूप से सरकार के नियमित कर्मचारी न हों, परंतु उनकी भूमिका और सेवाएं सरकार की कार्यक्षमता बनाए रखने में अत्यंत महत्त्वपूर्ण हैं।
आउटसोर्सिंग का विकास और पृष्ठभूमि

1. आर्थिक उदारीकरण के बाद का परिदृश्य

1991 के बाद जब भारत में उदारीकरण, निजीकरण और वैश्वीकरण की नीतियाँ अपनाई गईं, तब सरकारी खर्चों को नियंत्रित रखने की जरूरत बढ़ी। साथ ही, दक्षता और जवाबदेही लाने के लिए कई कार्यों को निजी क्षेत्र के माध्यम से करवाने की अवधारणा उभरी।

2. सरकारी नौकरियों में कटौती और वैकल्पिक व्यवस्था

नियमित सरकारी नौकरियों की संख्या सीमित होती गई, भर्ती प्रक्रियाएं धीमी रहीं, जबकि कार्यों का विस्तार लगातार बढ़ता गया। ऐसे में आउटसोर्सिंग मॉडल अपनाकर जरूरतों को पूरा किया जाने लगा।

आउटसोर्सिंग कर्मचारियों की भूमिका

1. प्रशासनिक सहयोग

कई जिलों, तहसीलों और सचिवालयों में डाटा एंट्री ऑपरेटर, कंप्यूटर ऑपरेटर, क्लर्क, पीए, चपरासी जैसे पदों पर आउटसोर्स कर्मचारी नियुक्त होते हैं जो प्रशासनिक ढाँचे को संभालते हैं।

2. स्वास्थ्य सेवाओं में योगदान

आशा वर्कर, एनएम, लैब टेक्नीशियन, नर्सिंग स्टाफ, सफाईकर्मी, वार्ड बॉय आदि के रूप में स्वास्थ्य ढांचे की रीढ़ बन चुके हैं।

3. शिक्षा क्षेत्र में सहायक

विद्यार्थी गणना, परीक्षा मूल्यांकन, पोर्टल संचालन, पोषण आहार निगरानी जैसे कार्यों में इनका सीधा योगदान रहता है।

4. डिजिटल इंडिया और ई-गवर्नेंस

CSC (Common Service Centre), लोक सेवा केंद्र, ऑनलाइन पंजीकरण, आधार, जन्म-मृत्यु प्रमाणपत्र, राशन कार्ड से संबंधित सेवाएं आउटसोर्सिंग के सहारे ही संभव हो रही हैं।

सरकार के लिए महत्त्व

1. लागत नियंत्रण

नियमित कर्मचारी की तुलना में आउटसोर्स कर्मचारी पर खर्च कम आता है – वेतन, पेंशन, भत्तों की बचत होती है। इससे सरकार पर आर्थिक दबाव नहीं पड़ता।

2. त्वरित सेवा और लचीलापन

किसी योजना की शुरुआत के लिए बिना लंबे चयन प्रक्रिया के कर्मचारी तैनात किए जा सकते हैं। यह व्यवस्था लचीली और तत्कालिक है।

3. आपातकालीन स्थितियों में उपयोगी

कोविड-19 महामारी के दौरान बड़ी संख्या में आउटसोर्सिंग कर्मियों ने स्वास्थ्य सेवाओं, जनसंपर्क, निगरानी आदि कार्यों में मोर्चा संभाला।

4. तकनीकी दक्षता

कई बार आउटसोर्स कर्मचारी नई तकनीकों में प्रशिक्षित होते हैं, जिससे ई-गवर्नेंस परियोजनाएं सफल हो पाती हैं।

वास्तविक उदाहरण

1. उत्तर प्रदेश: स्वास्थ्य विभाग

UP में NHM (National Health Mission) के तहत हजारों आउटसोर्सिंग नर्स, फार्मासिस्ट, लैब टेक्नीशियन तैनात हैं। इन्हीं की बदौलत ग्रामीण इलाकों में स्वास्थ्य सेवाएं चालू रहती हैं।

2. दिल्ली सरकार: मोहल्ला क्लिनिक

डॉक्टर से लेकर लैब स्टाफ, हेल्प डेस्क तक अधिकांश कर्मचारी अनुबंध या आउटसोर्स मोड में हैं। फिर भी सेवाएं सफलतापूर्वक चल रही हैं।

3. राजस्थान: शिक्षा एवं पोषण

आंगनबाड़ी केंद्रों में कार्यरत सहायिका, रसोइया, डाटा ऑपरेटर – सब आउटसोर्सिंग पर हैं।

आउटसोर्स कर्मियों की चुनौतियाँ

1. वेतन असमानता

उनका वेतन स्थायी कर्मचारियों से बहुत कम होता है, जबकि कार्य लगभग समान होता है।

2. नौकरी की अस्थिरता

कोई सामाजिक सुरक्षा नहीं, न पेंशन, न चिकित्सा बीमा, न कोई भविष्य निधि की गारंटी।

3. उत्पीड़न और बिचौलियों की भूमिका

एजेंसियों के माध्यम से आने के कारण कई बार उनका शोषण होता है – समय पर वेतन नहीं मिलता, जब चाहे छँटनी कर दी जाती है।

4. पहचान और सम्मान की कमी

उन्हें कर्मचारी माना ही नहीं जाता, जिससे मनोबल पर असर पड़ता है।

नीतिगत सुधार की आवश्यकता

1. समान कार्य के लिए समान वेतन

न्यायपूर्ण वेतन निर्धारण हो ताकि उनके परिश्रम का सम्मान हो।

2. रोजगार की सुरक्षा

काम का आकलन कर सेवा निरंतर रखने की व्यवस्था हो।

3. एजेंसी तंत्र में पारदर्शिता

सरकार को स्वयं निगरानी करनी चाहिए कि एजेंसियां कर्मियों का शोषण न करें।

4. प्रशिक्षण और उन्नयन

समय-समय पर उन्हें नई तकनीकों की ट्रेनिंग दी जाए ताकि वे और दक्ष बन सकें।

समाजशास्त्रीय दृष्टिकोण

1. निम्न वर्ग से संबंध

अधिकतर आउटसोर्स कर्मचारी सामाजिक रूप से पिछड़े, आर्थिक रूप से कमजोर वर्ग से आते हैं – यह रोजगार उन्हें गरिमा देता है।

2. महिला सशक्तिकरण

स्वास्थ्य और शिक्षा में कई महिलाएं अनुबंध पर काम कर रही हैं, जो स्वावलंबन का माध्यम है।

3. ग्रामीण युवाओं को अवसर

जहाँ सरकारी नौकरियाँ नहीं पहुँचतीं, वहाँ यह विकल्प युवाओं के लिए सहारा है।

निष्कर्ष
भारत सरकार और राज्य सरकारें यदि अपने दैनंदिन कार्यों को निर्बाध रूप से चला पा रही हैं तो उसके पीछे नियमित अधिकारियों के साथ-साथ बड़ी संख्या में कार्यरत "आउटसोर्सिंग वर्ग कर्मचारी" हैं। उनकी उपस्थिति सरकारी तंत्र की नब्ज है – चाहे स्वास्थ्य हो, शिक्षा, प्रशासन या डिजिटल सेवा।

वे कम साधनों में भी कठिन कार्य करते हैं, सीमित वेतन में अधिक समय देते हैं और फिर भी अपेक्षित मान्यता नहीं पाते। ऐसे में यह समय है कि सरकारें आउटसोर्सिंग कर्मियों के प्रति अपनी सोच बदलें। उन्हें केवल "सस्ता श्रम" नहीं बल्कि "सशक्त भागीदार" के रूप में देखें। तभी एक न्यायपूर्ण, समावेशी और दक्ष प्रशासनिक व्यवस्था की स्थापना संभव हो सकेगा।  

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