आधी दुनिया का अस्तित्व!
ज्ञान दर्शन
-मंजुल भारद्वाज
ज्ञान दर्शन
चैतन्य पराकाष्ठा है
ऐसी ऊंचाई अकेली होती है
जैसे कैलाश पर्वत
जिस में विराजमान शिव
अकेले समाधिस्थ हैं
संसार में देवों के देव महादेव
पूजनीय हैं
पर अनुकरणीय?
संसार ज्ञान की दो बूंदों से
काम चला लेता है
जीवन यापन के लिए
अनिवार्य लगती हैं
एक बूंद
पेट कैसे भरा जाए में निपट जाती है
दूसरी बूंद
कैसे भोगा जाए
में खप जाती है !
तीसरी बूंद जीवन दर्शन का
ज्ञान सूत्र है
जिसे संसार में विरले मनुष्य ही
साधते हैं !
संसार ज्ञानियों की कथा सुनता है
वो कथा वाचक के साथ
खड़ा होता है
उसकी भक्ति करता है
पर ज्ञान मणि को भूल जाता है
जैसे तकनीक युग में
वैज्ञानिक नहीं
स्मार्ट फ़ोन बनाने वाले
तकनीशियन ज्यादा जाने जाते हैं!
भोग,वासना,लिप्सा के हुनरमंद
बाज़ार में बिकते हैं
जनता उनको
नायक,महानायक मानती है
ज्ञानी लात खाते हैं
ज्ञान से पेट नहीं भरता के
तीर ताने हर पल
उनको घायल करते हैं
वो धीरे धीरे कैलाश की
ओर चल पड़ते हैं !
ज्ञान वही अर्जित करता है
जो अपना शरीर गला सकता है
जब तक शरीर हावी रहेगा
तब तक ज्ञान पाँव तले
रौंदा जाएगा
जैसे सत्ता के नीचे
हर पल रौंदा जाता है संविधान
वर्चस्ववाद से रौंदी जाती है इंसानियत
संस्कार,संस्कृति और परम्पराओं से
रौंदी जाती है महिलाओं की अस्मिता
आधी दुनिया का अस्तित्व!
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